उदयपुर | केंद्र सरकार ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) का अस्तित्व समाप्त कर दिया है। इसके स्थान पर अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को लाया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी एक अधिसूचना में कहा गया कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 की धारा 60 की उपधारा (1) के अनुबंधों के अनुसरण में भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 को 25 सितंबर 2020 से निरस्त किया जाता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के ईएनटी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. सुरेश चंद्र शर्मा को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। शुक्रवार से शुरू हो रहा उनका कार्यकाल तीन साल का होगा। वहीं एमसीआई के ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ के महासचिव रहे राकेश कुमार वत्स आयोग के सचिव होंगे।
करियर काउंसलर विकास छाजेड़ ने बताया की भारतीय चिकित्सा परिषद की स्थापना 1934 में की गई थी | इसका काम चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए और भारत और विदेशों की चिकित्सा योग्यता की मान्यता के लिए समान मानकों को स्थापित करना था, अब इसे निरस्त कर दिया गया है | इसकी जगह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग आज से अस्तित्व में आ गया है, इसका काम मेडिकल संस्थानों और प्रोफेशनलों को विनियमित करने के लिए नीतियां बनाना होगा | यह स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित मानव संसाधनों और बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान देगा, यह निजी मेडिकल कॉलेजों और मानद विश्वविद्यालयों की अधिकतम सीटों की फीस तय करने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी करेगा |
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के मुख्य कार्य :
1. इस विधेयक में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के तहत चिकित्सा संस्थानों के स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा के संचालन, मूल्यांकन और मान्यता प्राप्त करने और चिकित्सकों के पंजीकरण के लिए चार स्वायत्त बोर्डों के गठन का प्रावधान है।
2. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की संरचना: इसमें सरकार द्वारा मनोनीत अध्यक्ष और सदस्य होंगे, और बोर्ड के सदस्यों का चयन कैबिनेट सचिव के तहत एक खोज समिति द्वारा किया जाएगा। आयोग में पांच निर्वाचित और 12 पदेन सदस्य होंगे।
3. विधेयक के अनुसार, सरकार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के तहत, निजी
मेडिकल कॉलेजों में 40% सीटों तक की फीस के लिए दिशानिर्देश तय कर सकती है। विधेयक में एक सामान्य प्रवेश परीक्षा और लाइसेंस प्राप्त (exit) परीक्षा का भी प्रावधान है जो मेडिकल स्नातकों को पीजी पाठ्यक्रमों का अभ्यास करने से पहले पास करना होता है। एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश के लिए नीट परीक्षा में अर्हता अनिवार्य होता है, अब इससे पहले कि छात्र एमबीबीएस कौसे करके प्रैक्टिस शुरू करें, उन्हें अब एग्जिट परीक्षा पास करनी होगी।
4. मान्यता प्राप्त चिकित्सा संस्थानों को अधिक सीटें जोड़ने या पीजी कोर्स शुरू करने के लिए नियामक की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यह तंत्र नियामक की विवेकाधीन शक्तियों को कम करेगा।
5. इससे पहले, मेडिकल कॉलेजों को स्थापना, मान्यता, वार्षिक अनुमति के नवीकरण या डिग्री की मान्यता के लिए MCI की मंजूरी की आवश्यकता थी, और यहां तक कि उनके द्वारा दाखिल किए गए छात्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई। नए विधेयक के तहत, नियामक की शक्तियां स्थापना और मान्यता के सम्बन्ध में कम हो जाती हैं। इसका मतलब कम लाल फीताशाही है, लेकिन मेडिकल कॉलेजों की जांच में भी कमी आएगी।
क्या है एग्जिट परीक्षा
करियर काउंसलर विकास छाजेड़ ने बताया की अभी तक की जानकारी अनुसार विदेश से पढ़कर आए डॉक्टरों की तर्ज पर अब सभी छात्रों को प्रक्टिस लाइसेंस के लिए टेस्ट देना होगा |
यह परीक्षा अभी तक विदेश में पढ़कर आए डॉक्टरों को ही देनी होती थी लेकिन इस आयोग अनुसार अब देश में पढ़ाई करने वाले डॉक्टर इस एग्जिट परीक्षा को पास करते हैं तभी उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस दिया जाएगा |
चिकित्सा क्षेत्र में स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए मेडिकल छात्रों को राहत देते हुए ‘नीट पीजी’ को खत्म करने का भी प्रस्ताव किया है जिसमे एमडी और एमएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एमबीबीएस की अंतिम वर्ष की एग्जिट परीक्षा ही काफी होगी | राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक के संशोधित मसौदे में संशोधन शामिल किया गया है जो जल्द ही कैबिनेट को भेजा जाएगा |
‘‘एनएमसी विधेयक में किए गए संशोधनों के अनुरूप स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश नेशनल एग्जिट टेस्ट (एनईएक्सटी) के परिणामों के आधार पर होगा, जो देशभर में साझा परीक्षा के रूप में होगा | इस तरह एमबीबीएस की अंतिम परीक्षा पास करने के बाद अभ्यर्थियों को स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एक अलग से परीक्षा में नहीं बैठना होगा.” इसके साथ ही नीट एस एस -सुपर स्पेशलिटी परीक्षा जारी रहेगी जो डीएम/एमसीएच पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है |